नेशनल डेस्क: जम्मू-कश्मीर इन दिनों प्रकृति के कहर से जूझ रहा है। डोडा और किश्तवाड़ जिलों में अचानक बादल फटने और मूसलाधार बारिश ने हालात बेहद भयावह बना दिए हैं। पहाड़ी इलाकों में आई बाढ़ ने न केवल मकानों और दुकानों को तबाह कर दिया, बल्कि सैकड़ों लोगों की जान जोखिम में पड़ गई। कुछ ही घंटों में जो नज़ारा सामने आया, उसने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया।
ऊपरी इलाकों में सबसे ज़्यादा तबाही
डोडा और किश्तवाड़ के ऊंचाई वाले हिस्सों में सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है। तेज बारिश के बाद कई मकान पूरी तरह से मलबे में बदल गए। जिन घरों को लोग अपनी ज़िंदगी की कमाई से खड़ा करते हैं, वे कुछ ही मिनटों में जमीनदोज हो गए। मजबूर होकर कई परिवार अपने टूटे घरों से जरूरी सामान निकालकर सुरक्षित जगहों की ओर पलायन कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग राहत सामग्री और सरकारी मदद का इंतजार कर रहे हैं। प्रशासन ने कुछ जगहों पर अस्थायी राहत शिविर बनाए हैं, लेकिन प्रभावित परिवारों की संख्या अधिक होने से यह प्रयास फिलहाल नाकाफी लग रहे हैं।
नदी-नालों में उफान, कस्बों में पानी घुसा
लगातार हुई भारी बारिश से नदियों और नालों का जलस्तर अचानक बढ़ गया। डोडा और किश्तवाड़ के कस्बों और बाजारों में पानी घुसने से सड़कों का नामोनिशान मिट गया। तेज बहाव से पुल और छोटे-छोटे रास्ते भी क्षतिग्रस्त हो गए। प्रशासन ने हालात को देखते हुए कई मार्गों को बंद कर दिया और लोगों से अपील की कि वे खतरे वाले क्षेत्रों से दूर रहें।
जम्मू-श्रीनगर हाईवे ठप
रामबन क्षेत्र में भारी भूस्खलन के कारण जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग को पूरी तरह बंद करना पड़ा। लगातार गिरते मलबे के कारण यातायात पूरी तरह रुक गया है। हाईवे पर फंसे यात्रियों को निकालने के लिए एनडीआरएफ और पुलिस की टीमें लगातार रेस्क्यू अभियान चला रही हैं। यह बंदी न केवल यात्रियों के लिए चुनौती बन रही है, बल्कि घाटी में जरूरी सामान की आपूर्ति भी प्रभावित हो रही है।
तवी नदी में सैलाब का खतरा
जम्मू क्षेत्र में तेज हवाओं के साथ लगातार बारिश से तवी नदी का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। कई गांव और बस्तियां जलमग्न हो चुकी हैं। प्रशासन ने एहतियात के तौर पर नदी किनारे बसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि ऐसे हालात उन्होंने वर्षों बाद देखे हैं।
धराली और किश्तवाड़ के दर्दनाक हादसे
पिछले कुछ समय से पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। हाल ही में उत्तराखंड के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई थी, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। किश्तवाड़ के चशोती गांव में 14 अगस्त को बादल फटने की घटना ने तबाही की नई मिसाल पेश की। मचैल माता यात्रा के दौरान अचानक आई बाढ़ ने यात्रियों के लंगर, दुकानों और घरों को बहा दिया। इस हादसे में 60 से अधिक लोगों की मौत हुई, 300 से ज्यादा घायल हुए और करीब 200 लोग लापता बताए जा रहे हैं। यह घटना दिखाती है कि प्राकृतिक आपदा कितनी अचानक और खतरनाक हो सकती है।
राहत और बचाव कार्य में जुटा प्रशासन
स्थानीय प्रशासन, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव कार्य कर रही हैं। हेलीकॉप्टर के जरिए प्रभावित जगहों पर खाने-पीने का सामान, दवाइयां और जरूरी सामग्री पहुंचाई जा रही है। लापता लोगों की तलाश के लिए ड्रोन और रेस्क्यू बोट का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रभावित परिवारों को अस्थायी शिविरों में रखा गया है, जहां मेडिकल टीम और मनोवैज्ञानिक भी तैनात किए गए हैं।
मौसम विभाग का अलर्ट
मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि अगले कुछ दिनों तक भारी बारिश का खतरा बना रहेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और पहाड़ों पर अनियंत्रित निर्माण इन आपदाओं की तीव्रता को बढ़ा रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण कार्य पर कड़ी निगरानी रखी जाए और आपदा प्रबंधन को मजबूत बनाया जाए। समय पर चेतावनी, बेहतर पूर्वानुमान प्रणाली और प्रभावी रेस्क्यू प्लान के जरिए ही ऐसे हादसों में होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है।
डोडा और किश्तवाड़ की घटनाएं यह संदेश देती हैं कि प्रकृति के सामने इंसान असहाय है। कुछ ही मिनटों में जीवनभर की मेहनत मलबे में बदल सकती है। फिलहाल राहत कार्य जारी हैं, लेकिन असली चुनौती यह है कि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए ठोस कदम कब उठाए जाएंगे।